Friday, August 19, 2022

श्रीकृष्णाष्टकम्

 श्रीकृष्णाष्टकम्

(श्री शंकराचार्यकृतम्)

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं

स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं

अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं

विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।

करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं

महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥ २ ॥

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं

व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।

यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया

युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥ ३ ॥

सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं

दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम्

समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं

समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥ ४ ॥

भुवोभरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं

यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।

दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं

दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् ॥ ५ ॥

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं

सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।

नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं

नमामि मेघसुन्दरं तटित्प्रभालसत्पटम् ॥ ६ ॥

समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं

नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् ।

निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं

रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ॥ ७ ॥

विदग्ध गोपिका मनो मनोज्ञ तल्पशायिनम्,

नमामि कुञ्ज कानने प्रवृद्ध वह्नि पायिनम्.

किशोरकान्ति रञ्जितम, द्रुगन्जनम् सुशोभितम,

गजेन्द्र मोक्ष कारिणम, नमामि श्रीविहारिणम ॥ ८ ॥


यदा तदा यथा तथा तदैव कृष्ण सत्कथा ,

मया सदैव गीयताम् तथा कृपा विधीयताम.

प्रमानिकाश्टकद्वयम् जपत्यधीत्य यः पुमान ,

भवेत् स नन्द नन्दने भवे भवे सुभक्तिमान ॥ ९ ॥

Tuesday, November 2, 2021

हिरण्यगर्भ सूक्त

 

हिरण्यगर्भ सूक्त हिंदी भावार्थ सहित

हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्॥

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ १ ॥

भावार्थ: हे देव! सूर्य आदि सभी तेजोमय पदार्थ आप में ही निहित है। आप सृष्टि के नियामक है। आप ही पृथ्वी, आकाश आदि लोकों के आधार है। हम आपकी अभ्यर्थना करते हैं।

य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः॥

यस्य छायामृतम् यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ २ ॥

भावार्थ: हे देव! आप आत्म ज्ञान,आत्मशक्ति और पुरुषार्थ चतुष्ट्य के प्रदाता है। समस्त विश्व आपकी उपासना करता है। आपका आश्रय परम सुख देने वाला है। आपसे विमुख होना मृत्यु का आमंत्रण है। आपकी कृपा अमृतत्व प्रदान करने वाला है। आप हमारी रक्षा करें।

यः प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव॥

यः ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ ३ ॥

भावार्थ: हे देव! आप अपने महान सामर्थ्य से ही समस्त चराचर जगत् के एकमात्र अधिपति और पोषक हैं। आप सम्पूर्ण ऐश्वर्य के दाता हैं। हम आपकी अभ्यर्थना करते हैं।

यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः॥

यस्येमाः प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ ४ ॥

भावार्थ: जिसके (महिमा) महत्त्व को ये हिमालय पर्वतनदी के साथ समुद्र भी वर्णन करते हुए से लगते हैंजिसकी ये सब चारों ओर की दिशाएँ भुजाओं जैसी-फैली हुयी हैं। हम आपकी अभ्यर्थना करते हैं।

येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृळहा येन स्वः स्तभितं येन नाकः॥

यो अंतरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ५ ॥

भावार्थ : हे देव! आपने ही द्युलोक को प्रकाशित किया है। आपने ही पृथ्वी आदि लोकों को सुस्थिर किया है। आपने ही समस्त लोकों का निर्माण किया है। आप आनंद स्वरूप हैं। हम आपके इस विराट स्वरूप को प्रणाम करते हैं। 

यं क्रन्दसी अवसा तस्तभाने अभ्यैक्षेतां मनसा रेजमाने॥

यत्राधि सूर उदतो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ ६ ॥

भावार्थ : आपने ही द्युलोक और पृथिवीलोक को आमने-सामने स्तम्भित (स्थिर) कर रखा है जिसके आधार पर सूर्य उदय (प्रकाशित) होता है ऐसे ईश्वर की हम अभ्यर्थना करते हैं।

आपो ह यद् बृहतीर्विश्वमायन् गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम्॥

ततो देवानाम् समवर्ततासुरेकः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ७ ॥

भावार्थ : जब सारा संसार जल में निमग्न था। उस समय सृष्टि के आरम्भ में परमाणु प्रवाह आग्नेय तत्त्व को अपने अन्दर धारण करता हुआ प्रकट होता हैतब समस्त देवों का प्राणभूत एक देव परमात्मा वर्त्तमान था ऐसे हिरण्यगर्भ रूप की हम अभ्यर्थना करते हैं।

यश्चिदापो महिना पर्यपश्यद् दक्षं दधाना जनयन्तीर्यज्ञम्॥

यो देवेष्वधि देवः एक आसीत कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ८ ॥

भावार्थ : हे देव! महा जलराशि में आपने अपने महत्त्व से सृष्टियज्ञ को-प्रकट करने के हेतु, बल वेग धारण करते हुए अप्तत्त्व-परमाणुओं को जो सब ओर से देखता है जानता है, जो सब देवों के ऊपर अधिष्ठाता होकर वर्त्तमान हैउस देव की हम अभ्यर्थना करते हैं।

मा नो हिंसीज्जनिताः यः पृथिव्या यो वा दिव सत्यधर्मा जजान॥

यश्चापश्चन्द्रा बृहतीर्जजान कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥ ९ ॥

भावार्थ : जिस परमात्मा ने पृथिवीलोकद्युलोकचन्द्रताराओं से भरा मन भानेवाला अन्तरिक्ष उत्पन्न किया हैहम उनकी अभ्यर्थना करते हैं।

प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव॥

यत् कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥ १० ॥

भावार्थ: हे देव! आप भूत-भविष्य-वर्तमान तीनों कालों में व्याप्त हैं। समस्त जड़-चेतन में आप ही व्याप्त हैं। आप सर्वोपरि हैं। आप ही सकल ऐश्वर्य के स्वामी हैं। हम अपनी सुख-समृद्धि के लिए आपकी उपासना करते हैं। हमारी कामना पूर्ण हो।

     ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

इति: हिरण्यगर्भः सूक्तम्॥

Sunday, July 4, 2021

चन्द्रशेखरअष्टकस्तोत्रम्

 चन्द्रशेखरअष्टकस्तोत्रम्।


चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर 

चन्द्रशेखर पाहि माम् । 

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर 

चन्द्रशेखर रक्ष माम् ॥१॥ 


रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं 

सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम् । 

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं 

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥२॥ 


पञ्चपादपपुष्पगन्धपदांबुजद्वयशोभितं 

भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम् । 

भस्मदिग्धकलेबरं भव नाशनं भवमव्ययं 

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥३॥ 


मत्तवारणमुख्यचर्मकॄतोत्तरीयमनोहरं  

पङ्कजासनपद्मलोचनपूजितांघ्रिसरोरुहम् । 

देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्तशुभ्रजटाधरं 

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥४॥ 


यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं 

शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेबरम् । 

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं 

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥५॥ 


कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वर कुण्डलं वृषवाहनं 

नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् । 

अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं  

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥६॥ 


भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं 

दक्षयज्ञविनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् । 

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं सकलाघसंघनिबर्हणं 

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥ 


भक्तवत्सलमर्चितं निधिक्षयं हरिदंबरं 

सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनुत्तमम् । 

सोमवारिदभूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं 

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥८॥ 


विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं 

संहरन्तमपि प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम् । 

कीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितं 

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥९॥ 


मृत्युभीतमृकण्डुसूनुकृतस्तवं शिवसन्निधौ 

यत्र कुत्र च यः पठेन्न हि तस्य मृत्युभयं भवेत । 

पूर्णमायुररोगतामखिलार्थसंपदमादरात 

चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः ॥१०॥ 


इति श्रीचन्द्रशेखराष्टकस्तोत्रं संपूर्णम ॥

Wednesday, February 24, 2021

शिव चालीसा

 ॥ दोहा ॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान । कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥ ॥ चौपाई ॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देखि नाग मन मोहे ॥ मैना मातु की हवे दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥ किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥ तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥ किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ वेद माहि महिमा तुम गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥ प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला । जरत सुरासुर भए विहाला ॥ कीन्ही दया तहं करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥ पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥ एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥ कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥ जय जय जय अनन्त अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥ दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥ त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट ते मोहि आन उबारो ॥ मात-पिता भ्राता सब होई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥ स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु मम संकट भारी ॥ धन निर्धन को देत सदा हीं । जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥ अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥ शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥ योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । शारद नारद शीश नवावैं ॥ नमो नमो जय नमः शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥ जो यह पाठ करे मन लाई । ता पर होत है शम्भु सहाई ॥ ॠनियां जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥ पुत्र होन कर इच्छा जोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥ पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥ त्रयोदशी व्रत करै हमेशा । ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥ धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥ जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥ कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥ ॥ दोहा ॥ नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा । तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥ मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान । स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥


Saturday, February 13, 2021

अत्रि मुनि कृत राम स्तुति

 अत्रि स्तुति(संस्कृत)

नमामि भक्त वत्सलं, कृपालु शील कोमलं। भजामि ते पदांबुजं, अकामिनां स्वधामदं॥१॥


निकाम श्याम सुंदरं, भवांबुनाथ मंदरं। प्रफुल्ल कंज लोचनं, मदादि दोष मोचनं॥२॥


प्रलंब बाहु विक्रमं, प्रभोऽप्रमेय वैभवं। निषंग चाप सायकं, धरं त्रिलोक नायकं॥३॥


दिनेश वंश मंडनं, महेश चाप खंडनं॥ मुनींद्र संत रंजनं, सुरारि वृंद भंजनं॥४॥


मनोज वैरि वंदितं, अजादि देव सेवितं। विशुद्ध बोध विग्रहं, समस्त दूषणापहं॥५॥


नमामि इंदिरा पतिं, सुखाकरं सतां गतिं। भजे सशक्ति सानुजं, शची पति प्रियानुजं॥६॥


त्वदंघ्रि मूल ये नराः, भजंति हीन मत्सराः। पतंति नो भवार्णवे, वितर्क वीचि संकुले॥७॥


विविक्त वासिनः सदा, भजंति मुक्तये मुदा। निरस्य इंद्रियादिकं, प्रयांति ते गतिं स्वकं॥८॥


तमेकमद्भुतं प्रभुं, निरीहमीश्वरं विभुं। जगद्गुरुं च शाश्वतं, तुरीयमेव केवलं॥९॥


भजामि भाव वल्लभं, कुयोगिनां सुदुर्लभं। स्वभक्त कल्प पादपं, समं सुसेव्यमन्वहं॥१०॥


अनूप रूप भूपतिं, नतोऽहमुर्विजा पतिं। प्रसीद मे नमामि ते, पदाब्ज भक्ति देहि मे॥११॥


पठंति ये स्तवं इदं, नरादरेण ते पदं। व्रजंति नात्र संशयं, त्वदीय भक्ति संयुताः॥ १२॥

Wednesday, January 6, 2021

नवग्रह कवच

 नवग्रह कवच

 शिरो मे पातु मार्तण्ड: कपालं रोहिणीपति:।

मुखमङ्गारक: पातु कण्ठं च शशिनन्दन:।।

बुद्धिं जीव: सदा पातु हृदयं भृगुनंदन:।

जठरं च शनि: पातु जिह्वां मे दितिनंदन:।।

पादौ केतु: सदा पातु वारा: सर्वाङ्गमेव च।

तिथयोऽष्टौ दिश: पान्तु नक्षत्राणि वपु: सदा।।

अंसौ राशि: सदा पातु योगश्च स्थैर्यमेव च।

सुचिरायु: सुखी पुत्री युद्धे च विजयी भवेत्।।

रोगात्प्रमुच्यते रोगी बन्धो मुच्येत बन्धनात्।

श्रियं च लभते नित्यं रिष्टिस्तस्य न जायते।।

य: करे धारयेन्नित्यं तस्य रिष्टिर्न जायते।।

पठनात् कवचस्यास्य सर्वपापात् प्रमुच्यते।

मृतवत्सा च या नारी काकवन्ध्या च या भवेत्।

जीववत्सा पुत्रवती भवत्येव न संशय:।।

एतां रक्षां पठेद् यस्तु अङ्गं स्पृष्ट्वापि वा पठेत्।।

Thursday, October 29, 2020

श्री उमा महेश्वर स्तोत्रं

 श्री उमा महेश्वर स्तोत्रं – Sri Uma Maheshwara Stotram

 

नमः शिवाभ्यां नवयौवनाभ्यां

परस्पराश्लिष्टवपुर्धराभ्याम् ।

नगॆन्द्रकन्यावृषकॆतनाभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 1 ॥

नमः शिवाभ्यां सरसॊत्सवाभ्यां

नमस्कृताभीष्टवरप्रदाभ्याम् ।

नारायणॆनार्चितपादुकाभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 2 ॥

नमः शिवाभ्यां वृषवाहनाभ्यां

विरिञ्चिविष्ण्विन्द्रसुपूजिताभ्याम् ।

विभूतिपाटीरविलॆपनाभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 3 ॥

नमः शिवाभ्यां जगदीश्वराभ्यां

जगत्पतिभ्यां जयविग्रहाभ्याम् ।

जम्भारिमुख्यैरभिवन्दिताभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 4 ॥

नमः शिवाभ्यां परमौषधाभ्यां

पञ्चाक्षरीपञ्जररञ्जिताभ्याम् ।

प्रपञ्चसृष्टिस्थितिसंहृताभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 5 ॥

नमः शिवाभ्यामतिसुन्दराभ्यां

अत्यन्तमासक्तहृदम्बुजाभ्याम् ।

अशॆषलॊकैकहितङ्कराभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 6 ॥

नमः शिवाभ्यां कलिनाशनाभ्यां

कङ्कालकल्याणवपुर्धराभ्याम् ।

कैलासशैलस्थितदॆवताभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 7 ॥

नमः शिवाभ्यामशुभापहाभ्यां

अशॆषलॊकैकविशॆषिताभ्याम् ।

अकुण्ठिताभ्यां स्मृतिसम्भृताभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 8 ॥

नमः शिवाभ्यां रथवाहनाभ्यां

रवीन्दुवैश्वानरलॊचनाभ्याम् ।

राकाशशाङ्काभमुखाम्बुजाभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 9 ॥

नमः शिवाभ्यां जटिलन्धराभ्यां

जरामृतिभ्यां च विवर्जिताभ्याम् ।

जनार्दनाब्जॊद्भवपूजिताभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 10 ॥

नमः शिवाभ्यां विषमॆक्षणाभ्यां

बिल्वच्छदामल्लिकदामभृद्भ्याम् ।

शॊभावतीशान्तवतीश्वराभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 11 ॥

नमः शिवाभ्यां पशुपालकाभ्यां

जगत्रयीरक्षणबद्धहृद्भ्याम् ।

समस्तदॆवासुरपूजिताभ्यां

नमॊ नमः शङ्करपार्वतीभ्याम् ॥ 12 ॥

स्तॊत्रं त्रिसन्ध्यं शिवपार्वतीभ्यां

भक्त्या पठॆद्द्वादशकं नरॊ यः ।

स सर्वसौभाग्यफलानि

भुङ्क्तॆ शतायुरान्तॆ शिवलॊकमॆति ॥ 13 ॥

श्रीकृष्णाष्टकम्

 श्रीकृष्णाष्टकम् (श्री शंकराचार्यकृतम्) भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् । सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुह...