*आशैव राक्षसी पुंसाम्*
*आशैव विषमञ्जरी।*
*आशैव जीर्णमदिरा*
*नैराश्यं परमं सुखम्॥*
अर्थात - प्राणी के लिए आशा ही राक्षसी, विषलता और जीर्ण मदिरा के समान है, अतः अपने जीवन में आशारहित होकर उद्योग करना चाहिए इसी में परम सुख है।
*🙏💐🌻मङ्गल🌻💐🙏*
श्रीकृष्णाष्टकम् (श्री शंकराचार्यकृतम्) भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् । सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुह...
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